मन का माध्यम : रोग निवारण का साधन रेकी

मन अपने आप में एक अलग ही तत्व है। जब वह सही होता है तो सारे संसार की शक्ति मिलकर भी उसे गलत नहीं ठहरा सकती, फिर चाहे सारा संसार उससे अलग ही क्यों न सोचे। और जब वह गलत होता है तो सारे संसार की शक्ति मिलकर भी उसे सही नहीं कर सकती। मन की शक्ति के उदाहरणों से इतिहास भरा पडा है। जैसे कौरवों ने जब मान लिया की पांडवों को उनका राज्य नहीं देना है तो भगवान् श्री कृष्ण के समझाने के बावजूद भी वे नहीं माने और महाभारत के युद्ध की घटना सामने आई। मन की शक्ति असीम और अदभुद है। रेकी का माध्यम मिलने पर मन की शक्ति बढ़ने की क्रिया बहुत तेजी से होती है। रेकी उत्प्रेरक का कार्य करती है इसका कारण यह है कि मन कार्य करता है प्राण शक्ति से, वास्तव में मन तो जड़ वस्तु है परन्तु वह चलायमान है आत्मा (प्राण शक्ति ) से । मन सदेव लिप्त रहता है विभिन्न – विभिन्न तम, रज और सत गुणी संस्कारों में और उसी अनुसार कार्य करता है । रेकी भी प्राण शक्ति ही है और यह हमारे शरीर में अवस्थित प्राणों तक पहुंचना चाहती है इसलिए मन के ऊपर के संस्कारों को त्वरित गति से हटाती है । संस्कारों का मेल हटने के कारण मन आत्म प्रकाश से प्रकाशित होता है और उसकी शक्ति बढती है इसलिए रेकी स्वयं मन को प्रकाशित होने में मदद करती है ।

मन की शक्ति कोई साधारण बात नहीं है, अगर हम समझना चाहते हैं कि मन किस तरह कार्य करता है तो उसे अपने नियंत्रण में लाना होगा । क्योंकि मनःशक्ति अत्यंत शुक्ष्म गति से कार्य करती है । उसकी सूक्ष्मता को समझना ही उसकी शक्ति को जानना है । ध्यान, योग, साधना इसकी सूक्ष्मता को समझने के माध्यम हैं । रेकी मन को नियंत्रण करने का और मन की शक्ति को समझने का सबसे सरल साधन है । मन और शरीर में प्रकटीकरण के अलावा और कोई अंतर नहीं है, शरीर जड़ अभिव्यक्ति है और मन उसी की शुक्ष्म अभिव्यक्ति। वाष्प रूप में पानी अदृश्य रहता है और द्रवित होने पर वाष्प तरल होकर पानी के रूप में आ जाती है और हिमकरण करने पर ठोस बर्फ बन जाती है, उसी प्रकार मन भी जीवन और शरीर बन सकता है, विध्युतमय या “द्रवरूप” प्राण या “घन रूप” शरीर ।

मनःशक्ति से आप शरीर के प्राण में और स्वयं शरीर में भी परिवर्तन उपलब्ध कर सकते हैं । यह मन ही है जो शरीर को बल प्रदान करता है। शरीर को स्वास्थ्यवर्धक उत्तेजना दी जाय तो मन को भी बेहतर लगता है । यही कारण है कि जो लोग रेकी करते है वे मन और शरीर दोनों से सुन्दर होते हैं और उनका आत्म विश्वास बढ़ा हुआ होता है । क्योंकि रेकी हमारे मन ही नहीं प्राण शक्ति को भी उत्तेजित करती है. शरीर और मन दौनों एक दुसरे से सम्बंधित हैं, मन के साथ कुछ होता है तो शरीर पर तुरंत असर दिखाई दे जाता है और शरीर पर कुछ होता है तो उसका असर मन पर तुरंत दिखाई पड़ जाता है। इसलिए हम मन पर शरीर के माध्यम से और शरीर पर मन के माध्यम से प्रभाव डाल सकते हैं। रेकी करने से यह कार्य सरल हो जाता है । हम में से करीब करीब सभी व्यक्ति चाहते हैं कि जैसे परमात्मा जैसा चाहता है वैसा ही हो जाता है, तो हम भी वैसा ही कर सकें कि, इधर हम सोचें और उधर घटना घट जाए । मन में हम सब असंभव को संभव करना चाहते हैं (कार्टून फ़िल्में भी हमारे मन की ही उपज हैं )। मन आपको कुछ भी करने की क्षमता प्रदान कर सकता है इसलिए पहले छोटी छोटी बातों में इसका प्रयोग करके देखें, जब तक उसकी पूर्ण शक्ति को विकसित न कर लें। इस हेतु रोजाना रेकी करने के दौरान अपनी साँसों की गति को धीमें धीमें नियंत्रित करें और उसके आवागमन को गहरे तक समझने लगें और इस दौरान शरीर पर होने वाले प्रभावों को भी देखें और उस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दें । धीरे धीरे जब आप सभी ओर से प्रतिक्रिया विहीन हो जायेगे और साँसों पर नियंत्रण करना शुरू कर देगे तो जान लीजिये मन की शक्ति को समझने और अहसास करने के लायक आप हो गए। अगर नित्य प्रति आप यह अभ्यास कम से कम एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम नहीं कर सकते तो अकस्मात मनःशक्ति पर पूर्ण निर्भर होने का प्रयास भी नहीं करें। मन की शक्ति को हमें धीरे धीरे तब तक प्रशिक्षित करना होता है जब तक हम पूर्ण रूप से यह नहीं जान जाते कि मनःशक्ति किस प्रकार काम करती है ।

मन लाभप्रद और हानिप्रद , दोनो ही काम कर सकता है। यह अत्यंत ही धूर्त होता है अतः इसके प्रति सहज एवं सजग रहना आवश्यक है । एक बार एक महिला के गले में बुरी तरह संक्रमण हो गया, संक्रमण इतना कि वे कुछ भी निगल नहीं सकती थी। वह महिला एक उच्च मनःस्थिति वाले संत के पास गई और रो-रोकर कहने लगी ” मुझे इस रोग से मुक्त करने हेतु जो भी कर सकते हैं आप करें ” . संत ने उससे कहा “ तुम्हारे मन ने तुम्हारी ये दशा बनाई है” उस स्त्री को पता नहीं था कि संत उसके गले पर हाथ रखकर अपने विचारों की शक्ति वहां उतार रहे थे, उसे सिर्फ इतना मालूम था कि संत के हाथ रखने के पश्चात वह खा-पी सकती थी, उसे कोई दर्द नहीं था और वह खुश थी । संत के वहां से आजाने के पश्चात उसे अपने स्वस्थ होने पर शंका हुई और उसने जाकर आईने में अपने गले को देखा और पाया कि गले की फोड़े तो वैसे के वैसे ही हैं तो तुरंत ही उसके गले का दर्द भी लौट आया और वह चीख उठी। वह वापस संत के पास गई , उन्होंने उससे पूछा कि ”तुमने क्या किया । स्त्री ने जवाब दिया “ मैंने आईने में अपना गला देखा” . संत ने कहा “मैंने ईश्वर के प्रकाश (रेकी) में तुम्हारा गला स्वस्थ देखा था इसलिए तुम ठीक हो गई थी परन्तु तुमने आईने में रोग को देखा और अब तुम्हें फिर से दर्द हो रहा है ” । उस स्त्री का मन ग्रहणशील था अतः दुबारा संत ने जब एक गिलास पानी पीने को दिया तो वह पानी पीकर ठीक हो गई । उसके बाद दुबारा उसने गला आईने में देखने का प्रयास नहीं किया । इससे यह निश्चित होता है कि मन बहुत कुछ कर सकता है । स्नायुविक रोगों में, जो गलत विचारों के कारण उत्पन्न होते हैं, मन अत्यंत शीघ्रता से स्वास्थ्यता ला सकता है, जब उसकी शक्ति का सही तरीके से उपयोग किया जाय। उपरोक्त स्त्री के मामले में संत का तपोबल और मनःशक्ति थी जिसने तुरंत कार्य किया । साथ ही स्त्री की ग्रहणशीलता भी थी । परन्तु आज के जमाने में वैसे संत भी नहीं और अगर है भी तो सहजता से उपलब्ध नहीं हैं इसलिए रेकी की पुनः खोज हुई । चूँकि रेकी स्वतः ही कार्य कर सकती है अतः इसे हर कोई व्यक्ति सीख कर कर सकता है, सिर्फ उसकी मन की ग्रहणशीलता अच्छी होनी चाहिए।

मन माया के सम्मोहन में रहता है । यह माया का संसार है और मनुष्य को यहाँ माया के सम्मोहन में रखा जाता है। हमारे मन ने जता दिया है कि हम कई सीमाओं में बंधे हैं , कोई कहता है कि कॉफ़ी पिए बिना मेरा काम नहीं चल सकता, कोई कहता है जेब में फलाने द्वारा दी गई ताबीज रखने पर ही वह कुछ सोच सकता है या कर सकता है आदि । ऐसे उदाहरणों से यह संसार भरा पड़ा है। जब हम रेकी करते हैं तो हम मन के पार जाने लगते हैं, मन की सीमाओं के बंधन टूटने लगते हैं, हमारी अध्यात्मिक जागृति होती है और मन की शक्ति विकसित होने लगती है। इसलिए भारत में आत्मा को अज्ञान के रोग से मुक्त करने अर्थात आत्मा को ढांक कर रखने वाले अज्ञान को दूर करने को ही सर्वोत्तम रोग-निवारक कहा गया है, क्योंकि वही स्थाई होता है। माया से मुक्त होने के लिए ईश्वर में जागें । मनःशक्ति बढाने का यह सबसे सरल तरीका है कि ईश्वर की भक्ति में लींन रहें, उसके चिंतन में इस प्रकार मगन रहें कि वे अकस्मात् माया के सारे बंधन खोल देवें तब आप जानेंगे कि शरीर उतना महत्वपूर्ण नहीं हैं जितना हम समझते हैं । इसका यह मतलब नहीं है कि शरीर का बिलकुल ध्यान नहीं रहें, इसके लिए भी कुछ नियम हैं उन्हीं के अंतर्गत शरीर का भी ध्यान रखें ।

मनः शक्ति को हमेंशा अधिक रखें, इसे इतना बढायें कि चाहे कुछ भी क्यों न हो, जीवन में किसी भी परिस्थिति का सामना निडरता से करते हुए आप अविचलित खड़े रह सकें । यदि मनःशक्ति में, ईश्वर में विश्वास रखते हैं तो किसी भी परिस्थिति का सामना करने को सदा तैयार रहेंगे , दुखों से कभी भी नहीं घबराएंगे, आशावादी और विचारों से बलवान बनेंगे। आपकी अंतरानुभूति ही सबसे महत्वपूर्ण है।

नित्य रेकी करें, किसी के भी अधिकारों का और प्रकृति की नियमों का अतिक्रमण नहीं करें। रेकी देवें और उसकी रोग निवारण शक्ति की महिमा का श्रेय स्वयं कभी न लेवें । जितना अधिक आप यह चाहेंगे कि लोग ये जाने कि आप कितने महान हैं , उतने ही आप मनःशक्ति से क्षीण होते चले जायेगे । जितना अधिक आप अपनी मनःशक्ति को प्रदर्शित करके लोगों पर उसकी छाप डालना चाहेंगे उतनी ही मनःशक्ति आपके पास कम होती चली जायेगी । अपनी अंतरात्मा के समक्ष और सर्वशक्तिमान परमात्मा के समक्ष पवित्र और अहंकार रहित बनकर खड़े रहें तभी परमात्मा आपको अदभुद शक्तियां और अनुभव प्रदान करेंगे । ब्रह्मचर्य का पालन करें, संतुलित आहार लें, सदा खुश रहें और मुस्कुराते रहें । आनंद को अपनी अंतरात्मा से जोड़ें, जो इसे समझते हैं वे प्राणशक्ति (रेकी) से सदैव आवेशित रहते हैं । जब आप अन्दर से आनंदित होते हैं तो ईश्वर की अदम्य शक्ति आप में प्रवेश करती है, आपकी मनःशक्ति बढती है । आनंद जब सच्चा होता है तब आप मुस्कराहट के राजकुमार होते हैं । सच्ची मुस्कराहट प्राणशक्ति को शरीर की प्रत्येक कोशिका में भेजती है। आनंदित मनुष्य रोग का आसानी से शिकार नहीं होता क्योंकि आनंदित शरीर ब्रह्मांडीय ऊर्जा (रेकी ) को अधिक मात्र में स्वतः ही अपने अन्दर खींचता हैं । ऐसी मुस्कराहट ध्यान से ही उपलब्ध होती है अतः प्रतिदिन गहरा ध्यान करें । जब आप रेकी (ईश्वर ) में लीन रहते हैं तब आप सचेतन रूप से उसकी उपस्थिति को अपने शरीर में प्रकट कर सकते हैं ।